भगवद् गीता: अध्याय 1-18 का पूर्ण विवरण और श्रीकृष्ण की शिक्षाएँ

🌺 प्रस्तावना

श्रीमद्भगवद्गीता हिंदू धर्म का एक पवित्र ग्रंथ है, जो महाभारत के भीष्मपर्व का हिस्सा है। इसमें 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन, धर्म, कर्म, भक्ति और मोक्ष का उपदेश दिया। आइए, प्रत्येक अध्याय का सार और कृष्ण की शिक्षाओं को संस्कृत श्लोकों के साथ समझते हैं।


📖 अध्याय 1: अर्जुनविषादयोग (Arjuna Viṣāda Yoga)

प्रमुख संस्कृत श्लोक (1.28-30):

दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्। सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति॥ वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते। गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते॥

अर्थ:

“हे कृष्ण! युद्ध के लिए तैयार अपने स्वजनों को देखकर मेरे अंग शिथिल हो रहे हैं, मुख सूख रहा है, शरीर काँप रहा है, रोमांच हो रहा है, गांडीव (धनुष) हाथ से छूट रहा है और त्वचा जल रही है।”

शिक्षाएँ:

  1. मोह की स्थिति: अर्जुन का मोह मनुष्य की सामान्य दुविधा को दर्शाता है।
  2. आध्यात्मिक संकट: जब धर्म और कर्तव्य के बीच संघर्ष होता है, तब गुरु/भगवान की शरण लेनी चाहिए।

📖 अध्याय 2: सांख्ययोग (Sāṅkhya Yoga)

प्रमुख संस्कृत श्लोक (2.47):

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

अर्थ:

“तुम्हारा अधिकार केवल कर्म पर है, फल पर कभी नहीं। फल की इच्छा से कर्म मत करो और न ही कर्म न करने में आसक्त हो।”

शिक्षाएँ:

  1. निष्काम कर्म: कर्म करो, पर फल की चिंता मत करो।
  2. आत्मज्ञान: आत्मा न शरीर है, न मरती है, न जन्म लेती है (2.20)।
  3. स्थितप्रज्ञ का लक्षण: जो दुःख-सुख में समान रहता है, वही योगी है (2.56-57)।

📖 अध्याय 3: कर्मयोग (Karma Yoga)

प्रमुख संस्कृत श्लोक (3.19):

तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर। असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः॥

अर्थ:

“अतः आसक्ति रहित होकर निरंतर कर्तव्य कर्म करो। आसक्ति त्यागकर कर्म करने वाला मनुष्य परम पद को प्राप्त होता है।”

शिक्षाएँ:

  1. कर्तव्यपालन: स्वधर्म (अपना कर्तव्य) त्यागना पाप है (3.35)।
  2. यज्ञ भाव: बिना स्वार्थ के समाज के लिए कर्म करो (3.9-16)।
  3. ज्ञान से बड़ी भक्ति: ज्ञानी की अपेक्षा भक्त श्रेष्ठ है (3.25)।

📖 अध्याय 4: ज्ञानकर्मसंन्यासयोग (Jñāna Karma Sannyāsa Yoga)

प्रमुख संस्कृत श्लोक (4.7-8):

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥

अर्थ:

“हे भारत! जब-जब धर्म का नाश होता है और अधर्म बढ़ता है, तब-तब मैं स्वयं को प्रकट करता हूँ। सज्जनों की रक्षा, दुष्टों के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए मैं युग-युग में अवतरित होता हूँ।”

शिक्षाएँ:

  1. अवतार का रहस्य: भगवान धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं।
  2. ज्ञान की शक्ति: ज्ञान अग्नि सभी पापों को भस्म कर देती है (4.37)।
  3. कर्मयोग: ज्ञान प्राप्त करके भी कर्म करना चाहिए (4.18)।

📖 अध्याय 5: कर्मसंन्यासयोग (Karma Sannyāsa Yoga)

प्रमुख संस्कृत श्लोक (5.10):

ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः। लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा॥

अर्थ:

“जो मनुष्य सभी कर्मों को ब्रह्म में अर्पण करके आसक्ति त्यागकर कर्म करता है, वह पाप से उसी प्रकार अलिप्त रहता है, जैसे जल से कमल का पत्ता।”

शिक्षाएँ:

  1. संन्यास vs कर्मयोग: कर्म त्यागने से अच्छा है निष्काम कर्म (5.2)।
  2. आत्मदर्शन: जो आत्मा को देखता है, वह सर्वत्र समदर्शी हो जाता है (5.18)।
  3. शांति का मार्ग: इंद्रियों को वश में करके ही शांति मिलती है (5.22-23)।

📖 अध्याय 6: ध्यान योग (Dhyāna Yoga)

संस्कृत श्लोक (6.18):

यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते। निःस्पृहः सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा॥

अर्थ:

“जब नियंत्रित मन आत्मा में स्थिर हो जाता है और सभी कामनाओं से मुक्त हो जाता है, तब वह ‘युक्त’ (योगी) कहलाता है।”

शिक्षाएँ:

  1. मन की एकाग्रता ही योग है।
  2. कामनाओं का त्याग आवश्यक है।
  3. समाधि की अवस्था में ही आत्मज्ञान प्राप्त होता है।

📖 अध्याय 7: ज्ञान-विज्ञान योग (Jñāna-Vijñāna Yoga)

संस्कृत श्लोक (7.7):

मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय। मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव॥

अर्थ:

“हे अर्जुन! मुझसे परे कुछ भी नहीं है। यह समस्त जगत मुझमें गुंथा हुआ है, जैसे मणियाँ धागे में।”

शिक्षाएँ:

  1. भगवान ही समस्त सृष्टि का आधार हैं।
  2. भक्ति और ज्ञान से ही उन्हें जाना जा सकता है।

📖 अध्याय 8: अक्षर ब्रह्म योग (Akṣara Brahma Yoga)

संस्कृत श्लोक (8.5):

अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्। यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः॥

अर्थ:

“जो अंतिम समय में मेरा स्मरण करते हुए शरीर त्यागता है, वह मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है, इसमें संशय नहीं।”

शिक्षाएँ:

  1. मृत्यु के समय भगवान का स्मरण मोक्ष दिलाता है।
  2. ॐकार का जप मुक्ति का मार्ग है।

📖 अध्याय 9: राजविद्या-राजगुह्य योग (Rāja Vidyā-Rāja Guhya Yoga)

संस्कृत श्लोक (9.22):

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥

अर्थ:

“जो लोग अनन्य भाव से मेरा चिंतन करते हैं, मैं उनका योग (प्राप्ति) और क्षेम (रक्षा) स्वयं वहन करता हूँ।”

शिक्षाएँ:

  1. भक्ति सर्वोत्तम साधना है।
  2. भगवान भक्त के सभी कार्य संभाल लेते हैं।

📖 अध्याय 10: विभूति योग (Vibhūti Yoga)

संस्कृत श्लोक (10.20):

अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः। अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च॥

अर्थ:

“हे अर्जुन! मैं सभी प्राणियों के हृदय में स्थित आत्मा हूँ। मैं ही आदि, मध्य और अंत हूँ।”

शिक्षाएँ:

  1. भगवान सर्वव्यापी हैं।
  2. उनकी विभूतियाँ अनंत हैं।

📖 अध्याय 11: विश्वरूप दर्शन योग (Viśvarūpa Darśana Yoga)

संस्कृत श्लोक (11.32):

कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः। ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः॥

अर्थ:

“मैं संहारक काल हूँ, संपूर्ण लोकों का विनाश करने के लिए प्रवृत्त हुआ। तुम्हारे अतिरिक्त ये सभी योद्धा मारे जाएँगे।”

शिक्षाएँ:

  1. भगवान का विश्वरूप दर्शन जीवन को बदल देता है।
  2. सृष्टि का नियम है – जो जन्मा है, वह मरेगा।

📖 अध्याय 12: भक्ति योग (Bhakti Yoga)

संस्कृत श्लोक (12.2):

मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते। श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः॥

अर्थ:

“जो मन को मुझमें लगाकर निरंतर मेरी उपासना करते हैं, वे परम श्रद्धालु मेरे सर्वोत्तम भक्त हैं।”

शिक्षाएँ:

  1. भक्ति ही सबसे सरल मार्ग है।
  2. भगवान भक्त के हृदय में निवास करते हैं।

📖 अध्याय 13: क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ योग (Kṣetra-Kṣetrajña Yoga)

संस्कृत श्लोक (13.27):

समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम्। विनश्यत्स्वविनश्यन्तं यः पश्यति स पश्यति॥

अर्थ:

“जो परमेश्वर को समभाव से सभी प्राणियों में स्थित, नष्ट होते शरीरों में अविनाशी देखता है, वही सच्चा ज्ञानी है।”

शिक्षाएँ:

  1. आत्मा अविनाशी है, शरीर नश्वर है।
  2. सभी में एक ही परमात्मा का वास है।

📖 अध्याय 14: गुणत्रय विभाग योग (Guṇa Traya Vibhāga Yoga)

संस्कृत श्लोक (14.26):

मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते। स गुणान्समतीत्यैतान्ब्रह्मभूयाय कल्पते॥

अर्थ:

“जो अविचल भक्ति से मेरी सेवा करता है, वह तीनों गुणों को पार कर ब्रह्मपद को प्राप्त होता है।”

शिक्षाएँ:

  1. सत्व, रज, तम गुणों से ऊपर उठना आवश्यक है।
  2. भक्ति ही मुक्ति का मार्ग है।

📖 अध्याय 15: पुरुषोत्तम योग (Puruṣottama Yoga)

संस्कृत श्लोक (15.6):

न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः। यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम॥

अर्थ:

“वह मेरा परम धाम है, जहाँ न सूर्य, न चंद्र, न अग्नि प्रकाश करते हैं। जहाँ जाकर लौटना नहीं होता।”

शिक्षाएँ:

  1. भगवान का धाम अविनाशी है।
  2. आत्मा अनंत है।

📖 अध्याय 16: दैवासुर संपद् विभाग योग (Daivāsura Sampad Vibhāga Yoga)

संस्कृत श्लोक (16.21):

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः। कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्॥

अर्थ:

“काम, क्रोध और लोभ – ये तीन नरक के द्वार हैं, इन्हें त्याग देना चाहिए।”

शिक्षाएँ:

  1. दैवी गुणों को अपनाओ।
  2. आसुरी प्रवृत्तियों से बचो।

📖 अध्याय 17: श्रद्धात्रय विभाग योग (Śraddhā Traya Vibhāga Yoga)

संस्कृत श्लोक (17.28):

अश्रद्धया हुतं दत्तं तपस्तप्तं कृतं च यत्। असदित्युच्यते पार्थ न च तत्प्रेत्य नो इह॥

अर्थ:

“हे अर्जुन! श्रद्धारहित यज्ञ, दान, तप और कर्म ‘असत्’ कहे जाते हैं, वे इस लोक और परलोक में व्यर्थ हैं।”

शिक्षाएँ:

  1. श्रद्धा से किया गया कर्म ही फलदायी होता है।
  2. सात्विक भाव से कर्म करो।

अध्याय 18 – मोक्ष संन्यास योग (Moksha Sannyasa Yoga)

📜 प्रमुख संस्कृत श्लोक (18.66)

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥

🕉️ हिंदी अर्थ

“समस्त धर्मों को त्यागकर तुम केवल मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो।”

🌟 श्रीकृष्ण की प्रमुख शिक्षाएँ

  1. परम शरणागति – सभी धार्मिक बंधनों से ऊपर उठकर सीधे भगवान की शरण में जाना ही सच्चा मोक्ष मार्ग है।
  2. दिव्य कृपा का सिद्धांत – भक्त के समर्पण मात्र से ही भगवान सारे पापों का नाश कर देते हैं।
  3. अंतिम आध्यात्मिक निर्देश – यह श्लोक सम्पूर्ण गीता का सार प्रस्तुत करता है।

📚 अध्याय 18 के अन्य प्रमुख बिंदु

  • कर्म, ज्ञान और भक्ति योग का समन्वय
  • तीन प्रकार के त्याग (तामसिक, राजसिक, सात्विक) का विवेचन
  • गुणों के अनुसार मनुष्यों की प्रवृत्तियों का विश्लेषण
  • स्वधर्म पालन का महत्व

🌅 सम्पूर्ण गीता का सार

  • योग त्रयी: ज्ञान (अध्याय 1-6), कर्म (7-12) और भक्ति (13-18) का समन्वय
  • मुक्ति का सूत्र: भक्ति + ज्ञान + निष्काम कर्म = मोक्ष
  • अंतिम उपदेश: “मेरी शरण में आओ” – यही गीता का परम संदेश है

“योगः कर्मसु कौशलम्”
(कर्मों में कुशलता ही योग है – 2.50)

इस प्रकार भगवद्गीता मनुष्य को आत्मज्ञान, मानसिक शांति और परम मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है। 🕉️

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